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बिछड़ों को मिलाने का जुनून 86 साल के राजाराम तिवारी में आज भी कायम है। इस उम्र में भी वह जोशोखरोश से गंगा के तट पर जमे हुए हैं। नाम उनका भले ही राजाराम तिवारी हो लेकिन प्रशासन से जुड़े लोग एवं श्रृद्धालु उन्हें भूले- भटके के नाम से ही ज्यादा जानते हैं। शायद इसी वजह से वह पिछले 66 सालों में अब तक दस लाख 64 हजार 748 भूले-भटकों को उनके परिजनों से मिला चुके हैं।
दूसरों के लिए जीवन बिताने वाले राजाराम तिवारी ने भारत सेवा दल के मुखिया के रूप में भूले भटकों को मिलाने का अभियान देश आजाद होने के एक वर्ष पूर्व 1946 में आयोजित माघ मेले से किया था। तब उन्होंने 870 भूले भटकों को मिलाया था। इसके बाद से राजाराम तिवारी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा ।
अब तक 55 माघ मेला और 11 कुंभ / अर्द्धकुंभ मेले में लाखों भूले भटकों को मिलाने का काम कर चुके हैं। उम्र अधिक होने की वजह से अब उनका साथ उनके बेटे उमेश चंद्र तिवारी दे रहे हैं। उमेश को उन्होंने भारत सेवा दल का अध्यक्ष नामित किया है जबकि खुद वह संचालक की भूमिका में हैं।
राजाराम बताते हैं कि आजादी के बाद पड़े पहले कुंभ मेले में उन्होंने 1597 भूले भटकों को उनके परिजनों से मिलाया था। इसमें 128 बच्चे भी शामिल थे, जबकि सबसे ज्यादा भूले बिसरों को उन्होंने वर्ष 2001 में आयोजित महाकुंभ में मिलवाया था। तब उन्होंने एक लाख 22 हजार 766 भूले बिसरों को उनके परिजनों से मिलवाया था।
उनका कहना है कि मेले में भटके लोगों को उनके अपनों से मिलाने में जो सुख की अनुभूति होती है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि सिर्फ कुंभ/अर्द्धकुंभ मेले में ही तीन लाख 54 हजार 765 भूले भटकों को उनके परिजनों से मिलाया है।
आज भी याद है 1954 का कुंभ
1954 में आयोजित कुंभ मेले में मची भगदड़ इलाहाबाद के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा हादसा है। राजाराम उस कुंभ में भी काफी मुस्तैदी से भूले भटकों को मिलाने का काम कर रहे थे। इसी बीच उन्हें मालूम पड़ा कि मेले में भगदड़ मच गई है। इस हादसे में एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी लेकिन राजाराम और उनके साथियों ने दर्जनों लोगों की जान बचाई थी।
टी काटकर बनाया था भोंपू
पुराने दिनों के बारे में राजाराम तिवारी के बेटे उमेश चंद्र तिवारी बताते हैं कि 1946 में आयोजित माघ मेले में लाउडस्पीकर न होने की वजह से श्री तिवारी ने टीन काटकर उसका भोंपू बनाया था। कुल नौ लोगों की टोली के साथ वह दिनभर मेले में पैदल घूमकर भूले बिसरों को मिलाते थे। तब उनके इस कार्य की जिला प्रशासन ने काफी सराहना भी की थी।
खुद ही करते हैं भोजन पानी की व्यवस्था
भूले बिसरे शिविर में आने वाले लोगों के खाने पीने की व्यवस्था राजाराम तिवारी और उनकी टीम खुद ही करती हैं। टीम से जुड़े सदस्य पुष्कर उपाध्याय, जो मेले भर लाउडस्पीकर से भूले बिसरों का नाम पुकारते हैं, ने बताया कि भारत सेवा दल भूले बिसरों को हर संभव मदद देने का प्रयास करता है। उन्होंने बताया कि कई बार ऐसा भी हुआ है कि जब किसी भटके हुए व्यक्ति को हफ्तों वहां रखना पड़ा।